बुधवार, अक्टूबर 4, 2023
spot_imgspot_imgspot_img
होमअनोखास्पोर्ट्समैन स्पिरिट कहां(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

स्पोर्ट्समैन स्पिरिट कहां(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

न्यूज़ समय तक

(अच्छा लगे, तो मीडिया के साथी *राजेन्द्र शर्मा* का यह व्यंग्य ले सकते हैं। सूचित करेंगे, तो खुशी होगी।)*

स्पोर्ट्समैन स्पिरिट कहां(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

देखी‚ देखी‚ इन इंडिया वालों की चीटिंग देखी! कहते हैं टीवी एंकरों का बहिष्कार करेंगे। बाकायदा चौदह नामों की तो सूची भी जारी कर दी है। उस पर यह धमकी और कि आगे नाम बढ़ा भी सकते हैं। बताइए‚ बेचारे एंकर लोगों ने कितनी मेहनत से इनके लिए सवाल तैयार करने‚ फील्डिंग सेट करने‚ जरूरत पड़े तो खुद भी मैदान में कूद पड़ने की ट्रेनिंग पूरी की है‚ और अब उस ट्रेनिंग को आजमाने का टैम आया है‚ चुनाव के सीजन की बुकिंग भी हो गई है‚ तो ये पट्ठे अखाड़े में उतरने से ही इनकार कर रहे हैं। क्या यही है इनकी स्पोर्ट्समैन स्पिरिट?मोदी जी की पार्टी वालों ने बिल्कुल सही कहा –– इंडिया वालों‚ तुम भारत के एंकरों का बहिष्कार कर कैसे सकते होॽ उनके शो में जाने से इनकार कैसे कर सकते होॽ एंकर के शो में जाने से इनकार –– यह तो जनतंत्र विरोधी है, बल्कि यह तो जनतंत्र की हत्या है। दूसरी इमरजेंसी है‚ इमरजेंसी। मीडिया को कुचलने की कोशिश है और वह भी डेमोक्रेसी में। कहां तो मोदी जी सारी दुनिया से भारत को डेमोक्रेसी की मम्मी मनवाने में लगे हुए हैं, बल्कि जी–20 में करीब–करीब मनवा भी चुके हैं। और कहां ये इंडिया वाले डेमोक्रेसी की मम्मी को बदनाम करने में लगे हुए हैं। प्रेस की स्वतंत्रता के सूचकांक पर भारत अब और जरा-सा भी नीचे खिसका‚ तो उसकी सारी जिम्मेदारी इन इंडिया वालों की ही होगी। इंडिया वालों की हद तो यह है कि बहिष्कार करने को‚ जनतांत्रिक अधिकार साबित करने की कोशिश और कर रहे हैं। कह रहे हैं कि अपने भगवा एंकर‚ भगवा पार्टी अपने पास ही रखे‚ हम ऐसे एंकरों से दूर ही भले। लेकिन मुद्दा भगवा एंकरों से प्यार करने – नहीं करने का है ही नहीं। मुद्दा है‚ एंकरों की जद से बाहर निकल जाने का। भगवा पार्टी वालों से ये बेचारे एंकर सवाल करेंगे नहीं और इंडिया वाले उनके सवाल सुनने के लिए आएंगे नहीं‚ फिर बेचारे गोदी चैनलों का क्या होगा?देश गांधी का हुआ, तो क्या हुआ ; बहिष्कार और सत्याग्रह से गांधी ने आजादी दिलाई, तो क्या हुआ — भगवा एंकरों का बहिष्कार‚ किसी का जनतांत्रिक अधिकार नहीं हो सकता है। यह तो अपराध है‚ खुल्लम–खुल्ला भेदभाव। भेदभाव भी मामूली नहीं‚ खांटी रंगभेद। भगवा एंकरों का यह अपमान‚ नहीं सहेगा हिंदुस्तान।*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Most Popular

Recent Comments