सोमवार, दिसम्बर 2, 2024
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संपादकीय

*सम्पादकीय*✍️*हम बहुत हंसते थे जिन्दगी ने आज रोना सिखा दिया*,।*सबके साथ बैठना अच्छा लगता था आज अकेले रहना सिखा दिया*।*बात करने का बहुत शौक था *जिन्दगी ने आज चुप रहना सिखा दिया*।जिन्दगी का गुजरता हर पल अपनी यादों को समेटे निरन्तर चलता रहता है।समय के रथ का पहिया जब अपनी रफ़्तार कम करता है तब तक बहुत कुछ पीछे छूट जाता है।जब जिन्दगी रफ्तार में थी तब कुछ नजर नहीं आता था आज जब जीवन का रथ थक कर विश्राम के लिये रुका तो कुछ भी आगे पीछे दिखाई नहीं दे रहा है। तन्हाई है,! रुसवाई‌ है‌! हर किसी से मिल रही बे वफाई‌ है! बेकार हो गयी जीवन भर की कमाई है।?खुशियों का जमाना खतम‌ हो गया!सब कुछ रहकर अब कुछ भी नहीं! कुनबा सारा बे रहम हो गया! जिनके सुख में सब‌ गंवा दिये !,अमन चैन सब लुटा दिये उस घर में बीरानी है!हर कोई मतलब परस्त हो गया अपने में सबकोई मस्त हो गया! सुख सुविधा अम्बार भरा पर हया लाज न पानी है!हर घर में यह रोग फ़ैल गया हर घर में मनमानी है! बदलता परिवेश विशेष बदलाव के साथ सम्भाव के अभाव का प्रादुर्भाव लगातार कर रहा है।परिवर्तन का संकीर्तन अन्तर्मन को सशंकित करता जा रहा‌ है। तन्हाई का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। हर किसी मे गुरूर है‌ ।एक दुसरे को नीचा दिखाने के लिये हर कोई मशहूर‌ है। न बड़े छोटे का लिहाज है न मां बाप की इज्जत कहीं आज है।!जब तक मतलब है अपना सब‌ है! ज्योही आ गयी लुगाई, अपनी हो गयी कमाई, तब फिर कहां नाता रिश्ताकैसा घर परिवार कैसा मा बाप कैसा भाई! कितनी बड़ी बिडम्बना है! जिसके लिये सब कुछ किया आज वही सामने तन कर खडा‌ है! जिस जीवन की बगिया में सुबह शाम चहचहाहट रहती थी! सबके चेहरे पर खुशहाली भरी मुस्कराहट रहती थी!सबका सम्मान था घर का मुखिया‌ ही घर का अभिमान था! आदर सत्कार सद ब्यवहार सु बिचार के साथ ही सबमें ईमान था !अब तो खत्म हो भाई चारा भाई भाई में हो गया बंटवारा ? आखरी वक्त में मां बाप लाचार होकर बन गये बेचारा ! गजब‌ का माहौल हो गया!हर तरफ मायूसी का पहरा‌ है,! किसी में उल्लास नहीं सबका उतरा चेहरा‌ है।! पुरातन ब्यवस्था बदल गयी! कंकरीट के मकानों में शैतानों का बास हुआ तो लक्ष्मी निकल गयी।धर्म संस्कृति का विलोपन हो रहा‌ है !आधुनिकता की आग सब कुछ तर्पण हो रहा है। कोई भी ऐसा घर नहीं जिस घर का मुखिया नहीं रो रहा‌ है। दोस्तो इस ज़माने को क्या हो गया !जो अपना था वहीं बे वफ़ा हो गया? जब जीवन के सफर में हम सफर तन्हा छोड़कर चला जाता है उसके बाद से ही शुरु होता कांटों भरे रास्ते पर तन्हाई का सफर!न कोई साथी न सघाती! हर कदम पर दर्द का ठोकर लगना लाज़िम हो जाता है।कोई अपना नहीं रह जाता है! दिन में बेचैनी रात में बिरानी सिसक सिसक‌ कर कटती है जिंदगानी!सब कुछ रहकर भी कुछ नहीं ! हर मुकाम परेशानी ही परेशानी?मन की बात मन के ही भीतर‌!मेला में रहने वाला अकेला हो जाता‌ है! कुछ दिनों में ही गजब‌ का खेला‌ हो जाता है। तन्हाई‌ के साथ ही आखरी बिदाई भी होती है! न कोई अपना होता‌ है न कायनात रोती है? इस मतलबी संसार में सब मतलब भर साथ निभाते हैं। सारे रिश्ते जरूरत भर है।बदलता समाज आज जिस दौर से गुजर रहा है वह निश्चित रूप से आने वाले कल में ऐसे समाज का निर्माण करेगा जो पाश्चात्य सभ्यता को भी मात कर देगा।इसको कोई रोक भी नहीं पायेगा कलयुग मुस्करा रहा है।अपनी ताकत दिखा रहा है। होईहे वही जो रामरची राखा ????🕉️🙏🏻🙏

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