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नगरपालिका की “हॉट” सीट की “हार” पर “हीरो” बनने एवं “खलनायक” बनाने की मची “होड़”
👉भाजपा में हार के आत्ममंथन के बजाय आरोपों-प्रत्यारोपों का खेल शुरू!
👉पिछड़े मतदाताओं के गठजोड़ एवं मुस्लिमों की एकजुटता ने दौड़ाई साइकिल!
👉संघ के एक पदाधिकारी की बोगस रणनीति ने किया बंटाधार!
👉पुलिस ने जितना दिखाया रौद्र रूप उतना एकजुट हुआ मुस्लिम मतदाता!
👉फॉरवर्ड मतदाताओं को बूथ तक पहुंचाने में भी नाकाम रहे सत्ताधारी!
👉मतों के बिखराव एवं अंदर खाने के खेल से औंधे मुंह गिरी भाजपा!
👉चुनाव में 05 अध्यक्ष एवं बड़ी संख्या में सभासदों के अलावा मत प्रतिशत बढ़ाने में सफल रही भाजपा!
👉पार्टी के बड़े नेताओं,पुराने चेहरों एवं कद्दावरों के ना निकलने से भी प्रभावित हुआ चुनाव!
👉जीत दिलाने एवं हवा बनाने के ठेकेदारों के थोथे आश्वासनों में गच्चा गाए जिम्मेदार! निकाय चुनाव के आए परिणाम के बाद राजनीतिक दलों के बीच हार-जीत की गणित लगाने का सिलसिला जारी है। वैसे तो फतेहपुर जिले में 02 नगरपालिका परिषद एवं 08 नगरपंचायतों का चुनाव हुआ लेकिन हॉट सीट रही फतेहपुर नगरपालिका परिषद में भारतीय जनता पार्टी को मिली शिकस्त के बाद हीरो बनने एवं खलनायक बनाने का सिलसिला शुरू है।आरोप-प्रत्यारोप जारी हैं लेकिन हार के कारणों पर मंथन करने को केवल जुबानी जंग चल रही है। टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार,मतदान तक जिस तरह से भाजपा के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को जीत का ताना-बाना बुनना चाहिए उससे हटकर अगले साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले हुए निकाय चुनाव की स्क्रिप्ट किसी और ने ही पर्दे के पीछे से लिखी थी।सूत्र बताते हैं कि संघ के एक पदाधिकारी ने जिस तरह से चुनावी रणनीति को बाट लगा दी उसका परिणाम पराजय के रूप में सामने आया।समाजवादी पार्टी की रणनीति,मतों के ध्रुवीकरण की चुनाव के दौरान चली तेज हवा के झोंकों को भाजपाई भांप नहीं पाए।पिछड़े वर्ग के मतों के हुए जबरदस्त ध्रुवीकरण ने दलगत एवं जातिगत बन्धनों को तोड़ कर रख दिया तो जितना खाकी ने रौद्र रुप दिखाया उतना मुस्लिम मतदाता एकजुट होता रहा जबकि भारतीय जनता पार्टी के चुनाव प्रचार में बडे नेताओं के ना निकलने का असर देखने को मिला।फॉरवर्ड मतदाताओं को बूथ तक पहुंचाने में भी भाजपा गच्चा खा गई।हार का ठीकरा अब एक-दूसरे पर फोड़ने की होड़ मची हुई है। निकाय चुनाव में नगरपालिका परिषद फतेहपुर केंद्र पर रही। टिकट पाने की दौड़ में प्रमोद द्विवेदी आगे तो निकल गए लेकिन भाजपा अपने मतों को संजोने में नाकाम साबित हुई हलांकि पिछले चुनाव की अपेक्षा भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन शानदार रहा और बहुआ में पहली बार भाजपा का परचम लहराया।इसके अलावा चार अन्य सीटों पर भी भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी विजयी हुए।बड़ी संख्या में सभासद भी कमल खिलाने में कामयाब रहे तो मतों के प्रतिशत को भी बढाने में सफलता मिली।
नामांकन के बाद से जिस तरह से भाजपा का चुनाव प्रचार आगे बढ़ा उससे जीत के लिए भाजपा आश्वस्त जरूर रही लेकिन ‘ब्लैक-होलों’ को भरने की कवायद नहीं की गई। चुनाव प्रचार के दौरान गिने-चुने वही पुराने चेहरे जो बिना लाग-लपेट के पार्टी के प्रत्याशी को जिताने का दमखम दिखाते आ रहे हैं,दिखाई पड़े।नतीजा यह रहा कि इन्हीं चेहरों के भरोसे कार्यकर्ता सम्मेलन,प्रबुद्ध सम्मेलन एवं जीत की नैया पार लगाने की रणनीति हवा में रही। बड़ी संख्या में स्वजातीय एवं फॉरवर्ड मतदाताओं का भी टोटा नजर आया।प्रचार तो होता रहा लेकिन ऐसा प्रचार हुआ जहां भाजपा का बड़ी संख्या में परंपरागत मतदाता रहा वहां प्रत्याशी पहुंचा ही नहीं। ठेकेदारों से घिरे रहे जिम्मेदार सपा की हवा को भांप ही नहीं पाए।पिछड़े वर्ग के मतदाताओं ने जिस तरह से सपा के पक्ष में एकजुटता दिखाई उससे दलगत एवं जातिगत सारे के सारे बंधन टूट गए।नतीजा यह रहा कि भाजपा के वोटर रहे इन मतदाताओं को सपा में जाने से रोका नहीं जा सका।
खबर तो यह भी है कि पार्टी के जुड़े बड़े नेताओं ने भी अंदर खाने बड़ा खेल खेला।पुलिस को आगे करके चुनाव जीतने का ताना-बाना बुनने वाले संघ के एक पदाधिकारी ने कोतवाली पुलिस को रोबोट बना दिया।इसका परिणाम रहा कि जितना पुलिस ने लाठी भांजी उतना मुस्लिम मतदाता सपा में एकजुट होता नजर आया।चुनाव जीतने की मंशा रखने वाले गलतफहमी का भी शिकार हो गए जिसमें वह मुस्लिम मतदाताओं को बसपा की ओर मोड़ने की उड़ाई गई हवा को तेज नहीं चला सके।जमीनी हकीकत से कर्ता-धर्ता वाकिफ जरूर रहे लेकिन बोगस रणनीतिकारों के बहकावे का शिकार हो गए। सूत्र बताते हैं कि नगरपालिका परिषद की अध्यक्षा के प्रतिनिधि रहे हाजी रजा के ऊपर पुलिस प्रशासन की सख्ती को लेकर भारतीय जनता पार्टी का एक बड़ा खेमा राजी नहीं था।उनकी मंशा थी कि चुनाव रजा ही लड़ें और चुनाव एक पर एक केंद्रित हो जाए।रजा के चुनाव लड़ने पर भाजपा के परंपरागत मत मौर्या,पटेल एवं लोधी के अलावा अन्य पिछड़ी जातियों के मतों के मिलने की पूरी संभावना थी जो राजकुमार मौर्य के प्रत्याशी होने के बाद एकजुट हो गया और बड़ी संख्या में एक नाके से निकल गया।वैश्य,ब्राह्मण,कायस्थ,क्षत्रिय मतदाताओं की हुई छोटी टूट ने भी सपा को मजबूती प्रदान की।इसी का नतीजा रहा कि भाजपा को इस हॉट सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा। परिणाम के दिन जिस तरह से मतगणना स्थल पर भारतीय जनता पार्टी के अभिकर्ता एवं कार्यकर्ता परिणाम को लेकर उत्तेजित थे।उनकी उत्तेजना,नाराजगी,गुस्सा स्वभाविक था।आम कार्यकर्ता ने कड़ी मेहनत के बाद इस परिणाम की अपेक्षा नहीं की थी।सदर के पूर्व विधायक विक्रम सिंह ने मतगणना स्थल पर मौजूद कर्मचारियों पर नारेबाजी करने एवं पक्षपात करने का आरोप लगाया और पुनः मतगणना की मांग को लेकर प्रत्याशी के साथ बड़ी संख्या में इकट्ठा कार्यकर्ताओं के बीच धरने पर बैठ गए।
इस बीच पुलिस से हुई तीखी नोकझोंक एवं अभद्रता को भी किसी भी सभ्य समाज में स्थान नहीं दिया जा सकता हलांकि लोकतंत्र में अपनी बात कहने के लिए धरना प्रदर्शन किसी भी सूरत में कहीं से भी गलत नहीं था। भले ही पूर्व विधायक का उपस्थिति दर्ज कराने एवं आंदोलन करने का अपना अलग अंदाज हो लेकिन जब सपा के प्रत्याशी को जीत का प्रमाण पत्र मिल गया और वह अपने गंतव्य को रवाना हो गया तो फिर धरने पर बैठने का औचित्य आखिर क्या था?धरने पर बैठने के बाद परिणाम क्या निकला?
वह भी सबके सामने है।किरकिरी पार्टी की भी इस तरह से हुई कि अपनी ही सरकार में समाजवादियों द्वारा बेईमानी करा लेने की बात कह छाती पिटी गई। ये ना तो शुभ संकेत है और ना ही विक्रम सिंह जैसे संघर्षशील,दूरदर्शी,बेबाक एवं राजनीति की गहरी परख व पैठ रखने वाले नेता से उम्मीद की जा सकती है।
हार का मंथन भाजपा अवश्य करेगी लेकिन जिस तरह से आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू है उससे लोकसभा चुनाव के लिए इसे पार्टी के हित में नहीं कहा जा सकता।
सपा उत्साह में हैं तो भाजपाई गुस्से और सदमें का कॉकटेल पी रहे हैं।वहीं पुलिस को अपने विरोध में लगने वाले मुर्दाबाद के नारों एवं गालियों की गूंज अब भी सुनाई पड़ रही है।निश्चित रूप से हार-जीत का आत्म मंथन,चिंतन सभी करेंगे और इसे भविष्य के लिए सबक मानकर एकजुटता की इबारत लिखने की नई कवायद की जाएगी।