रविवार, सितम्बर 15, 2024
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जिला अस्पताल में छेड़छाड़ का मामला! 👉एक की गिरफ्तारी तो दूसरा कौन? 👉

👉जिला अस्पताल में छेड़छाड़ का मामला!
👉एक की गिरफ्तारी तो दूसरा कौन?
👉सवाल सत्योद्घाटन और सुरक्षा का!

*👉जिला अस्पताल में छेड़छाड़ का मामला!**👉एक की गिरफ्तारी तो दूसरा कौन?**👉सवाल सत्योद्घाटन और सुरक्षा का!**✍️फतेहपुर। ज़िला अस्पताल के ट्रामा सेन्टर में विगत एक अगस्त की देर रात चिकित्सीय स्टॉफ द्वारा तथाकथित छेड़छाड़ के मामले में दूसरा आरोपी कौन? यह अपने आप में बड़ा समसामयिक सवाल है। इस मामले में सिर्फ़ चीफ़ फार्मासिस्ट की गिरफ़्तारी अपने आप में कई सवाल खड़े करती है। अगर पीड़िता और फ़िर उसकी मां ने चिकित्सक की ओर भी पहले ईशारा किया था, तो फिर पुलिस द्वारा उन्हें सीधे क्लीन चिट देना भी कम चौंकाने वाला नहीं है…! घटना का जिस तरह का गर्भ रहा है, उससे इसकी सत्यता पर सवाल उठना लाज़िमी है…!* *उल्लेखनीय हैं कि विगत 05 अगस्त को अपरान्ह 09 बजे के क़रीब गाजीपुर थाना क्षेत्र के एक गांव की एक दलित महिला ने अस्पताल चौकी (पुलिस) में शिकायतीपत्र देकर आरोप लगाया था कि लगभग चार दिन पूर्व 01 अगस्त को रात्रि 11 बजे के करीब उसने अपनी बीमार नाबालिक बहन को सदर अस्पताल ले कर पहुची, जहां ट्रॉमा सेंटर में प्राथमिक उपचार के बाद उसे महिला वार्ड में भर्ती कर दिया गया। रात्रि 02 बजे के करीब पीड़िता के हाथ में लगे वीगो के आसपास सूझन आने पर उसकी मां वार्ड के स्टॉफ के गायब होने पर नीचे जाकर डाक्टर को सूचित किया, जिस पर नीचे लेकर आने को कहा़ गया।* *मां का कहना है कि बीमार को लेकर नीचे पहुंची तो डाक्टर ने मां को पानी लेने बाहर भेज दिया और जब वह वापस लौटीं तो कहा़ गया कि वापस महिला वार्ड ले जाओ। बकौल बहन बीमार ने मां को बताया कि उनकी नमौजूदगी में डाक्टरों ने उसके कपड़े उतार कर छेड़छाड़ की। दावा किया कि उसकी बहन व मां डाक्टरों को पहचान सकती हैं। शिकायतकर्ता का कहना है कि जब वह अस्पताल आई तो दोनों ने यह बात उससे बताई। पुलिस ने इस दरख्वास्त के आधार पर अज्ञात लोगों के विरूद्ध विभिन्न धाराओं मेंमुकदमा दर्ज़ कर लिया और चीफ़ फार्मासिस्ट को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।* *यह घटना अपने पीछे कई सवाल छोड़ गईं हैं। सबसे बड़ी बात उस रात सदर अस्पताल के महिला वार्ड में कोई स्टॉफ क्यों नहीं था? यानी स्टॉफ होता तो शायद यह घटना नहीं होती।* *नियम कहते हैं कि वार्ड में किसी मरीज की हालत बिगड़ने पर सर्व प्रथम वार्ड स्टॉफ को सूचित किया जाना चाहिए। स्टॉफ को अगर लगता है कि स्थिति उनके वश में नहीं है तो फिर आन -काल रजिस्टर में बकायदा कारण अंकित कर वरिष्ठ चिकित्सीय स्टॉफ को सूचित करे, और फिर उपलब्ध विशेषज्ञ चिकित्सक वार्ड में जाकर मरीज़ का उपचार करेगा और जब उपरोक्त चिकित्सक वार्ड रजिस्टर में मामला उसके भी स्तर से ऊपर का होने की रिपोर्ट लगा दे तो फिर स्वास्थ्य के उच्चाधिकारियों को सूचित कर आगे की कार्यवाही अमल में लाई जा सकती है।* *इस मामले में यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि अगर वास्तव में ऐसी कोई घटना हुईं है तो, इसके लिए सबसे बड़ी जिम्मेवारी उस दिन ड्यूटी पर रहे महिला वार्ड के स्टॉफ की बनती है, क्योंकि अगर वह मौजूद होता तो बीमार को नीचे नहीं आना पड़ता, और यह घटना न होती?* *इसी तरह एक और बड़ा सवाल कि भरा पूरा स्टॉफ होने के बावजूद उस दिन महिला चिकित्सीय स्टॉफ कहा था…! इसके अलावा यह विभागीय जांच का विषय है कि किन परिस्थितियों में डाक्टर ने मरीज़ को वार्ड से नीचे लेकर आने को कहा़ आदि आदि…! इस घटना ने स्वास्थ्य विभाग, पुलिस और ज़िला प्रशासन के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं…! क्या वास्तव में उस रात ऐसी कोई घटना हुईं और अगर नहीं तो राज क्या है। पुलिस ने एफआईआर के बाद मरीज़ और उसकी मां की कुछ अस्पष्ट सी निशानदेही पर चीफ़ फार्मासिस्ट को तो आनन फानन में गिरफ्तार कर लिया किन्तु सम्बन्धित चिकित्सक या अन्य कर्मचारी की पड़ताल या गिरफ़्तारी क्यों नहीं…!* *इस मामले में एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि जिस समय की घटना बताई जा रही है, उस समय दो स्वीपर, पैरा मेडिकल स्टाफ के पांच सदस्य कुल लगभग दर्जन भर का स्टाफ रहता है, क्या इतनी भीड़ में ऐसी घटना हो सकती है और अगर हुईं है तो फिर अन्य सभी की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए…? एक सवाल यह भी उठता है कि अगर घटना “ज़िला अस्पताल” की दलाल मण्डी की खेल का हिस्सा हैं तो फिर इनके शिकंजे मेंअगला बेकसूर कौन होगा…!*

✍️फतेहपुर। ज़िला अस्पताल के ट्रामा सेन्टर में विगत एक अगस्त की देर रात चिकित्सीय स्टॉफ द्वारा तथाकथित छेड़छाड़ के मामले में दूसरा आरोपी कौन? यह अपने आप में बड़ा समसामयिक सवाल है। इस मामले में सिर्फ़ चीफ़ फार्मासिस्ट की गिरफ़्तारी अपने आप में कई सवाल खड़े करती है। अगर पीड़िता और फ़िर उसकी मां ने चिकित्सक की ओर भी पहले ईशारा किया था, तो फिर पुलिस द्वारा उन्हें सीधे क्लीन चिट देना भी कम चौंकाने वाला नहीं है…! घटना का जिस तरह का गर्भ रहा है, उससे इसकी सत्यता पर सवाल उठना लाज़िमी है…!
उल्लेखनीय हैं कि विगत 05 अगस्त को अपरान्ह 09 बजे के क़रीब गाजीपुर थाना क्षेत्र के एक गांव की एक दलित महिला ने अस्पताल चौकी (पुलिस) में शिकायतीपत्र देकर आरोप लगाया था कि लगभग चार दिन पूर्व 01 अगस्त को रात्रि 11 बजे के करीब उसने अपनी बीमार नाबालिक बहन को सदर अस्पताल ले कर पहुची, जहां ट्रॉमा सेंटर में प्राथमिक उपचार के बाद उसे महिला वार्ड में भर्ती कर दिया गया। रात्रि 02 बजे के करीब पीड़िता के हाथ में लगे वीगो के आसपास सूझन आने पर उसकी मां वार्ड के स्टॉफ के गायब होने पर नीचे जाकर डाक्टर को सूचित किया, जिस पर नीचे लेकर आने को कहा़ गया।
मां का कहना है कि बीमार को लेकर नीचे पहुंची तो डाक्टर ने मां को पानी लेने बाहर भेज दिया और जब वह वापस लौटीं तो कहा़ गया कि वापस महिला वार्ड ले जाओ। बकौल बहन बीमार ने मां को बताया कि उनकी नमौजूदगी में डाक्टरों ने उसके कपड़े उतार कर छेड़छाड़ की। दावा किया कि उसकी बहन व मां डाक्टरों को पहचान सकती हैं। शिकायतकर्ता का कहना है कि जब वह अस्पताल आई तो दोनों ने यह बात उससे बताई। पुलिस ने इस दरख्वास्त के आधार पर अज्ञात लोगों के विरूद्ध विभिन्न धाराओं मेंमुकदमा दर्ज़ कर लिया और चीफ़ फार्मासिस्ट को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
यह घटना अपने पीछे कई सवाल छोड़ गईं हैं। सबसे बड़ी बात उस रात सदर अस्पताल के महिला वार्ड में कोई स्टॉफ क्यों नहीं था? यानी स्टॉफ होता तो शायद यह घटना नहीं होती।
नियम कहते हैं कि वार्ड में किसी मरीज की हालत बिगड़ने पर सर्व प्रथम वार्ड स्टॉफ को सूचित किया जाना चाहिए। स्टॉफ को अगर लगता है कि स्थिति उनके वश में नहीं है तो फिर आन -काल रजिस्टर में बकायदा कारण अंकित कर वरिष्ठ चिकित्सीय स्टॉफ को सूचित करे, और फिर उपलब्ध विशेषज्ञ चिकित्सक वार्ड में जाकर मरीज़ का उपचार करेगा और जब उपरोक्त चिकित्सक वार्ड रजिस्टर में मामला उसके भी स्तर से ऊपर का होने की रिपोर्ट लगा दे तो फिर स्वास्थ्य के उच्चाधिकारियों को सूचित कर आगे की कार्यवाही अमल में लाई जा सकती है।
इस मामले में यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि अगर वास्तव में ऐसी कोई घटना हुईं है तो, इसके लिए सबसे बड़ी जिम्मेवारी उस दिन ड्यूटी पर रहे महिला वार्ड के स्टॉफ की बनती है, क्योंकि अगर वह मौजूद होता तो बीमार को नीचे नहीं आना पड़ता, और यह घटना न होती?
इसी तरह एक और बड़ा सवाल कि भरा पूरा स्टॉफ होने के बावजूद उस दिन महिला चिकित्सीय स्टॉफ कहा था…! इसके अलावा यह विभागीय जांच का विषय है कि किन परिस्थितियों में डाक्टर ने मरीज़ को वार्ड से नीचे लेकर आने को कहा़ आदि आदि…! इस घटना ने स्वास्थ्य विभाग, पुलिस और ज़िला प्रशासन के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं…! क्या वास्तव में उस रात ऐसी कोई घटना हुईं और अगर नहीं तो राज क्या है। पुलिस ने एफआईआर के बाद मरीज़ और उसकी मां की कुछ अस्पष्ट सी निशानदेही पर चीफ़ फार्मासिस्ट को तो आनन फानन में गिरफ्तार कर लिया किन्तु सम्बन्धित चिकित्सक या अन्य कर्मचारी की पड़ताल या गिरफ़्तारी क्यों नहीं…!
इस मामले में एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि जिस समय की घटना बताई जा रही है, उस समय दो स्वीपर, पैरा मेडिकल स्टाफ के पांच सदस्य कुल लगभग दर्जन भर का स्टाफ रहता है, क्या इतनी भीड़ में ऐसी घटना हो सकती है और अगर हुईं है तो फिर अन्य सभी की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए…? एक सवाल यह भी उठता है कि अगर घटना “ज़िला अस्पताल” की दलाल मण्डी की खेल का हिस्सा हैं तो फिर इनके शिकंजे मेंअगला बेकसूर कौन होगा…!

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