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|| श्रावणी उपाकर्म |
आचार्य उमेश दत्त शुक्ला
आइये जानने का प्रयास करेंगें कि श्रावणी उपाकर्म क्या है |
श्रावणी उपाकर्म पर्व वैदिक काल से शरीर, मन और इन्द्रियों की पवित्रता का पुण्य पर्व माना जाता है । इस पर्व पर की जाने वाली सभी क्रियाओं का यह मूल भाव है कि बीते समय में मनुष्य से हुए ज्ञात-अज्ञत पापों का प्रायश्चित करना और भविष्य में सतकार्य करने का संकल्प लेना।
विधि :- श्रावणी उपाकर्म के तीन पक्ष है – प्रायश्चित्त संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय।
सर्वप्रथम होता है – पंचगव्य प्राशन प्रायश्चित्त रूप में हेमाद्रि स्नान संकल्प। गुरु के सान्निध्य में गोदुग्ध, दही, घृत, गोबर और गोमूत्र तथा पवित्र कुशा से स्नानकर वर्षभर में जाने-अनजाने में हुए पापकर्मों का प्रायश्चित्त कर जीवन को सकारात्मकता से भरते हैं।
स्नान के उपरांत मध्याह्न संध्या वंदन, सूर्योपस्थान गणपत्यादि पूजन रिषि पूजन एवं यज्ञोपवीत पूजन तथा इसके उपरांत अपने गुरूजी या श्रेष्ठ आचार्यजनों को यज्ञोपवीत का दान एवं स्वयं नूतन यज्ञोपवीत धारण । यज्ञोपवीत या जनेऊ आत्म संयम का संस्कार है। आज के दिन जिनका यज्ञोपवीत संस्कार हो चुका होता है, वह पुराने यज्ञोपवीत के स्थान पर नूतन यज्ञोपवीत धारण करते हैं। इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति आत्म संयमी है, वही संस्कार से दूसरा जन्म पाता है और द्विज कहलाता है। उपाकर्म का तीसरा पक्ष स्वाध्याय का है।
स्वाध्याय का शुभारंभ करते समय सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, स्मृति, सदसस्पति, अनुमति, छंद और ऋषि को घृत की आहुति दी जाती है वर्तमान में श्रावणी पूर्णिमा के दिन ही उपाकर्म और उत्सर्ग दोनों विधान कर दिए जाते हैं। प्रतीक रूप में किया जाने वाला यह विधान हमें स्वाध्याय और सुसंस्कारों के विकास के लिए प्रेरित करता है। यह जीवन शोधन की एक अति महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक-आध्यात्मिक प्रक्रिया है । उसे पूरी गम्भीरता के साथ किया जाना चाहिए।
श्रावणी पूर्णिमा दिनांक 22 अगस्त 2020दिन रविवार को कानपुर के गंगा तटों पर श्रावणी उपाकर्म का महोत्सव महत्वपूर्ण गंगा घाटों में गुरुजनों एवं श्रेष्ठ आचार्यों के सानिध्य में बड़े उत्साह के साथ मनाया गया ।।प्राचीन परम्परा अनुसार शास्त्रोक्त विधि से यशस्मृति आचार्य श्री सोमदत्त बाजपेई जी की कृपा स्वरूप , गुप्तार घाट में श्रावणी उपाकर्म आनन्द के साथ सम्पन्न हुआ , आचार्य श्री उमेश दत्त शुक्ल के कुशल नेतृत्व में परम्परागत तरीक़े से किया गया ।।आचार्य ओमहरी शर्मा , महेश शास्त्री रमेश मिश्रा प्रमोद तिवारी आचार्य दिलीप त्रिवेदी शिवशंकर रामबाबू शुक्ला धर्मेंद्र मिश्रा अरुण कुमार द्विवेदी शास्त्री , रमेश मिश्रा , चंद्रप्रकाश त्रिपाठी , कुमार गौरव शुक्ल , अमित पांडेय , राहुल प्रमोद तिवारी आचार्य दिलीप त्रिवेदी शिवशंकर रामबाबू शुक्ला धर्मेंद्र मिश्रा अरुण कुमार द्विवेदी मदन शुक्ला हरिप्रसाद शुक्ला अमित पांडे राजन शुक्ला सहित लगभग 101 विद्वानों ने इस श्रावणी कर्म में भाग लिया